छत्तीसगढ़

7 साल से खमतराई थाने में जमे ASI पर गंभीर सवाल, ट्रांसफर लिस्ट भी बनी मजाक; खुद को बताते हैं IG का ‘खास’

रायपुर। राजधानी के खमतराई थाने में पदस्थ एक सहायक उप निरीक्षक (ASI) रमेश यादव इन दिनों पुलिस महकमे में चर्चा का विषय बने हुए हैं। उन पर आरोप है कि प्रमोशन के बावजूद पिछले सात वर्षों से वे एक ही थाने में जमे हुए हैं, जो कि नियमों के विरुद्ध है। हद तो तब हो गई जब हाल ही में जारी हुई तबादला सूची में उनका नाम तो आया, लेकिन उनका ट्रांसफर आदेश खमतराई से खमतराई का ही निकला, जिससे पूरे मामले में विभागीय मिलीभगत की बू आ रही है।
‘खास’ रिश्ते और निजी कारोबार के आरोप
जानकारी के मुताबिक, यह ASI खुद को IG और अन्य उच्च पुलिस अधिकारियों का बेहद करीबी बताते हैं। सूत्रों का कहना है कि उनके पास खुद के ट्रक हैं, जिनका संचालन अलग-अलग क्षेत्रों में होता है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि उनके संबंध रायपुर और भिलाई के कबाड़ी कारोबारियों और चखना सेंटर संचालकों से भी बताए जा रहे हैं। आरोप है कि तिल्दा, आमानाका, धरसींवा और दुर्ग-भिलाई तक के कई थानों के कबाड़ियों से उनके मजबूत कनेक्शन हैं।
हर रात भिलाई में ‘गश्त’ और अनदेखी
स्थानीय लोगों और विभागीय सूत्रों के अनुसार, ASI साहब लगभग हर रात भिलाई में देखे जाते हैं, जबकि नियमों के मुताबिक किसी भी पुलिसकर्मी का अपने थाना क्षेत्र से बाहर नियमित रूप से जाना वर्जित है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि जब दूसरे पुलिसकर्मियों के प्रमोशन के साथ उनका ट्रांसफर किया गया, तो इस ASI को सात साल से एक ही थाने में क्यों बनाए रखा गया है? क्या विभागीय अधिकारी इन अनियमितताओं से अनजान हैं या जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं?
किसका ‘आशीर्वाद’ और पुलिस महकमे की साख दांव पर?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इस ASI को विभाग में किसका ‘आशीर्वाद’ प्राप्त है? क्या विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह सब संभव है, या फिर यह पूरी ‘सेटिंग’ ऊपर से हो रही है? यदि पुलिस विभाग में इस तरह के रसूखदार और अपने आप को नियम-कानून से ऊपर समझने वाले अफसरों को संरक्षण मिलता रहा, तो आम जनता का पुलिस पर से भरोसा उठना तय है।
यह सिर्फ एक ASI के एक थाने में जमे रहने का मामला नहीं है, बल्कि यह सवाल है कि उसे किसने रोका और क्यों नहीं हटाया गया? जनता और पुलिसकर्मी, दोनों ही जानना चाहते हैं कि क्या ईमानदार पुलिसकर्मियों की मेहनत पर ऐसे ‘विशेष’ अफसर हमेशा भारी पड़ते रहेंगे? यह घटना पुलिस महकमे की पारदर्शिता और ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

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