धर्म

बप्पा का यह स्वरूप घर में लाएगा खुशियां और बरसेगी अपार संपत्ति

गणेश चतुर्थी का उत्सव कहीं एक दिन तो कहीं 10 दिनों तक (अनंत चतुर्दशी तक) बड़े उत्साह से मनाया जाता है। गणपति की मूर्ति स्थापित कर, विधिवत पूजा, मंत्रोच्चार और आरती के साथ गणेश जी का स्वागत किया जाता है। भक्त गणेश जी को मोदक, दूर्वा घास, लाल फूल, लड्डू और गुड़ चढ़ाते हैं। अंतिम दिन गणेश विसर्जन किया जाता है, जिसमें भक्त "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयघोष के साथ मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं।

गणेश चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश जी की विभिन्न सूंड वाली आकृतियों का दर्शन पूजन किया जाता है। गणेश जी की सूंड की दिशा का अपना विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। संतान सुख की कामना करने वाले व्यक्तियों को बाल गणेश स्वरूप का पूजन करना चाहिए, इससे संतान कामना शीघ्र पूर्ण होती है, और संतान बुद्धिमान, स्वस्थ एवं पराक्रमी भी होती है। नृत्य करते हुए गणपति की छवि का पूजन विशेष रूप से कला जगत से जुड़े व्यक्तियों को करना चाहिए। इनका यह स्वरूप धन और आनंद देने वाला स्वरुप है। लेटी हुई मुद्रा में गणपति की छवि का पूजन करने से घर में सुख और आनंद का स्थायी निवास रहता है। सिंदूरी रंग के गणेश जी को वास्तु दोष दूर करने के लिए घर के मुख्य द्वार पर लगाया जाता है। ध्यान रखें कि ये बाईं ओर की सूंड की छवि वाले गणपति हों, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है और नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर रहती है।     

दक्षिणमुखी गणेश जी
गणपति जी की सूंड का अग्रभाग दाईं ओर मुड़ा होने पर उन्हें दक्षिणामुखी गणपति कहा जाता है। दाईं बाजू सूर्य नाड़ी का प्रतिनिधित्व करती है। इसके जागृत  होने पर व्यक्ति अधिक तेजस्वी और आत्मविश्वासी होता है। ऐसे गणेश जी को सिद्धि विनायक भी कहा जाता है। इनकी स्थापना घर में न कर मंदिर में ही की जाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button