कोरोना की भयावहता और अव्यवस्था के बीच पीसता इंसान, सब मजबूर हैं मदद की इच्छा शक्ति भी क्षीण होती जा रही है…मन बहुत आहत है

लगातार बढ़ते कोविड-19 के मामलों ने देश को दहला कर रख दिया है, वैश्विक महामारी की इस भयावहता और सरकारी तंत्र के बेबसी के बीच इंसान पीसता जा रहा है। हर रोज कोरोना पॉजिटिव लोगों और मौत के बढ़ते आंकड़ों से ज्यादा अस्पताल के वार्डों से आती खबरें से मन सहम उठता है। 21वीं सदी में भी हम इतने बेबस और परबस हैं की ना खुद की रक्षा कर पा रहे हैं और ना ही और लोगों की। साल 2020 के पहले ऐसा दावा किया जाता था कि इंसान ने हर चीज पर जीत हासिल कर ली है इंसान जीता जागता इंसान बना सकता है, इंसान के हर अंग प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं, कभी खबर आती थी कि इंसान अब मौत पर भी विजय पा लेगा, मगर इस वैश्विक महामारी ने सारे दावों को खोखला साबित कर दिया है, ना विज्ञान कोई काम आ रहा है और ना ही भगवान। कोरोना पर नियंत्रण हर दिन भारी पड़ता जा रहा है। बस आस लगाए बैठे है की एकदिन सब अच्छा हो जाएगा। शुरुवात में मदद और लोगों को ढांढस बंधाना आसान लगता था मगर अब ऐसा लगने लगा है जैसे हम केवल एक दूसरे की तकलीफ सुनकर तीसरे को भेज देते हैं और उम्मीद करते हैं की तीसरा कुछ कर जाएगा मगर उस तीसरे की भी उम्मीद किसी और से बंधी होती है। कुल मिलाकर हम बेबस और परबस साबित हो रहे हैं। 21वीं सदी में हम कहां खड़े हैं यह कोई नहीं बता सकता भविष्य की दिशा क्या होगी और दशा क्या होगी यह सब इस वैश्विक महामारी के रहमो करम पर टिका हुआ है।
मन बहुत आहत है…!
प्रकाश शर्मा…