राष्ट्रीय

SC से राष्ट्रपति तक: तमिलनाडु में बिल रोकने पर फिर मचा बवाल

नई दिल्ली
तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से विधानसभा से पारित विधेयकों को लटकाने का मामला कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। इसी मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राज्यपालों और राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर निर्णय लेने को कहा था। इस पर राष्ट्रपति की ओर से सुप्रीम कोर्ट से राय भी मांगी गई है कि आप कैसे ऐसा आदेश प्रेसिडेंट या राज्यपाल को दे सकते हैं। लेकिन इस बीच तमिलनाडु में ही विधेयकों को लटकाने पर ही फिर से खींचतान शुरू हो गई है। ताजा मामला कलैग्नार शताब्दी विश्वविद्यालय विधेयक से जुड़ा है। इस विधेयक को आर. एन. रवि ने रिजर्व कर लिया है और राष्ट्रपति के समक्ष भेजा है। राजभवन के सूत्रों ने यह जानकारी दी है।

पूर्व मुख्यमंत्री और एमके स्टालिन के पिता करुणानिधि को कलैग्नार के नाम से भी जाना जाता है। इस विधेयक को तमिलनाडु विधानसभा से अप्रैल में मंजूरी मिल गई थी। इसके तहत यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव है और उसके चांसलर चीफ मिनिस्टर होंगे। मौजूदा नियम के अनुसार किसी भी राज्य यूनिवर्सिटी के चांसलर संबंधित सूबे के राज्यपाल ही होते हैं। अब इस नियम को तमिलनाडु की स्टालिन सरकार बदलना चाहती है। राज्यपाल की ओर से बिल अटकाने से डीएमके भड़क गई है। पार्टी का कहना है कि राज्यपाल ने तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की खुली अवमानना की है।

डीएमके ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से एक महीने के अंदर निर्णय लेने को कहा था। इसके अलावा यह भी कहा था कि यदि राष्ट्रपति के पास राय लेने के लिए बिल भेजा जाए तो अधिकतम तीन महीने का ही वक्त लगना चाहिए। राज्यसभा सांसद और तमिलनाडु सरकार के वकील पी. विल्सन ने कहा, 'बिल को मंजूरी न देकर राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है। उनके पास कोई अधिकार नहीं है कि वे निर्णय न लें। उनकी यह ड्यूटी है कि वे मंत्री परिषद और विधानसभा से पारित विधेयक को मंजूरी प्रदान करें।'

माना जा रहा है कि इस मामले में यदि अगले कुछ दिनों में राज्यपाल या राष्ट्रपति की ओर से निर्णय ना लिया गया तो फिर डीएमके सरकार अदालत का रुख कर सकती है। बता दें कि राष्ट्रपति की ओर से मांगी गई सलाह पर पहले ही सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button