छत्तीसगढ़

कोरोना काल में ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों को विशेष वातावरण देने की जरूरत


ऑटिज्म से ग्रसित बच्चों को विशेष देखरेख की आवश्यकता होती है। कोरोना काल में उन्हें संक्रमण बचाने के लिए यह जिम्मेदारी और बढ़ गई है।
राज्य मानसिक चिकित्सालय सेंदरी के चिकित्सा मनोवैज्ञानिक डॉ. दिनेश लहरी बताया कोरोना काल में ऐसे बच्चों को विशेष वातावरण देने की भी जरूरत है।
जो बच्चे इस मानसिक विकार से पीड़ित होते हैं उनमें अलग तरह का व्यवहार देखा जाता है। ऐसे बच्चों में जन्म के 3 से 5 माह के बाद ही इसके लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।यह एक ऐसी मानसिक परिस्थिति है जिसमें यदि बच्चों को विशेष ध्यान न दिया जाए तो वह खुद को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
ऑटिज़म का न तो अभी तक कोई पुख्ता कारण पता चला है और न ही इसका अभी तक कोई इलाज खोजा जा सका है।समुदाय में भी इसके बारे में अभी जानकारी का अभाव है| लोगों को जागरूक करने के लिए ही हर वर्ष दुनिया भर में 2 अप्रैल को ऑटिज़म अवेर्नेस दी मनाया जाता है|
डॉ लहरी ने बताया कोरोना संक्रमण काल में तो यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ऐसे समय में इस प्रकार के बच्चों को विशेष वातावरण देने की जरूरत होती है।ऐसे बच्चों को घर पर ही ऐसा वातावरण बनाकर दे जिससे वह अधिक आक्रामक,चिड़चिड़ापन व जिद्दी न होने पाएं। कोविड-19 का समय ऐसा है जब सभी के लिए घर से बाहर निकलना भी खतरे कम नहीं है। इसीलिए विकासात्मक विकृति से ग्रसित बच्चों के लिए घर पर ही रहकर उनके अनुकूल वातावरण तैयार कर उनके एजुकेशन कौशल संबंधी क्रियाकलापों पर विशेष ध्यान देते रहें।
डॉ. लहरी का कहना है ‘ऑटिज़म से ग्रसित20 से 40 प्रतिशत बच्चे ही थेरेपी के माध्यम से सामान्य जीवन व्यतीत कर पाते हैं। लक्षणों की तीव्रता को देखकर ही इसकी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।इस विकार के लक्षणों वाले बच्चों के व्यवहारों का अवलोकन करते रहना चाहिए,अगर बच्चों के व्यवहार में कोई असमानतादिखे तो तुरंत उसको मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए। इससे समय रहते उसका उपचार शुरू किया जा सकता है।
राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय सेंदरी में उपचार के लिए आने वाले बच्चों में 30 में से 8 बच्चे ऑटिज्म से ग्रसित होते हैं।ऐसे बच्चों का उपचार उनके माता-पिता के साथ समायोजित कर किया जाता है।उन्हें बताया जाता है कि वह ऐसे बच्चों की देखरेख कैसे करें, डाक्टर लहरी ने बताया ।

बच्चों में दिखाई देते है ये लक्षण

ऐसे बच्चे ज्यादातर अकेले खेलना पसंद करते हैं। बहुत अधिक जिद्दी होते हैं। चीजों को बार-बार इधर-उधर घुमा घुमा कर देखते हैं। कई बार कुछ आवाज से भी परेशान होते हैं। गुमसुम और चुप रहते हैं किसी से अधिक बातचीत ही नहीं करते हैं। पंजों के बल चलना और नींद आने में परेशानी होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button